राष्ट्रीय वन नीति (1894 – अब तक)

नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम ब्रिटिश काल से लेकर वर्तमान काल तक के राष्ट्रीय वन नीति के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे |

भारत के सर्वप्रथम राष्ट्रीय वन नीति वन अधिनियम 1878 के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए लाया गया

राष्ट्रीय वन नीति का मुख्य प्रयोजन भारत के वन संसाधनों पर ब्रिटिश सरकार के अधिकारों को स्थापित करना और उनके उद्देश्यों के लिए उपलब्ध कराना था इस वन नीति में भारत के विकास के लिए वन संसाधनों को उपलब्ध कराने पर अधिक बल दिया इसके लिए वनों के प्रबंधन और संवर्धन पर बल दिया गया| पर्यावरणीय उद्देश्यों को उल्लेखित किया गया पर उसके लिए किसी रणनीति का अभाव था|

स्वतंत्र भारत की प्रथम वन नीति 1952

पहली बार देश के कुल विभाग के एक बटे तीन हिस्से को वन आक्षतित रखने का लक्ष्य तय किया गया वनों पर आश्रित स्थानीय समुदायों की आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया और उनकी जरूरत के लिए वन संसाधन के उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण और वन्य जीव संरक्षण पर निर्बल दिया गया |वैज्ञानिक वानिकी और वैज्ञानिक वन प्रबंधन पर बल दिया गया ताकि राष्ट्रीय विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए वनों को भी संरक्षित रखा जा सके| पहली बार वनों के उद्देश्यों को प्राथमिक रूप से पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना बताया गया|

राष्ट्रीय वन नीति को हम निम्नलिखित बिंदु से देख सकते हैं

वनों का वन्य जीवों का तथा प्राकृतिक पर्यावरण स्थलों का राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षण करना भी एक प्रमुख उद्देश्य था

देश की कुल 1/3 हिस्से पर वन क्षेत्र स्थापित करने का उद्देश्य जिसमें पहाड़ी इलाकों में दो बटे तीन हिस्से पर वन क्षेत्र स्थापित करने का उद्देश्य शामिल है

मरुस्थलीकरण तथा मृदा चरण के रोकथाम के लिए वन्य रोपण करना और राष्ट्रीय स्तर पर अन्य रोपण कार्यक्रम को चलाना

भारत के वृक्ष एवं वन क्षेत्र का वर्णन रोपण कार्यक्रमों के माध्यम से संवर्धन करना

इमारती लकड़ी का विवेकपुर इस्तेमाल ताकि वनों पर प्रत्येक दबाव को कम किया जा सके

जहां तक संभव हो एमआरपी लड़कियों का विकल्प सुनिश्चित करना

वन आज से समुदायों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन संसाधनों का उपलब्ध कराना जिसमें छोटी इमरती लकड़ी भी शामिल है

वानिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं शिक्षा की सुविधाओं को बेहतर बनाना

भारत के वन प्रबंधन के क्षेत्र में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना जिसमें महिलाओं की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया जाए|

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