अंतर्राष्ट्रीय विधि क्या होती है? अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा |  

नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम अंतर्राष्ट्रीय विधि क्या होती है ,अंतर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा बारे में अच्छी तरह से जानेंगे उम्मीद करता हूं कि आपको यह लेख आपके लिए जरूर उपयोगी साबित होगी |

आप लोगों से निवेदन है कि आप लोग यह लेख शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ें जिससे आपको इससे संबंधित पूरी जानकारी अच्छी तरह से मिल सके|

अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा

अंतर्राष्ट्रीय विधि को आरंभ में की राष्ट्रों विधि कहा जाता था लेकिन राष्ट्रों के मध्य परस्पर संबंधों को नियमित करने वाले नियमों को राष्ट्रों की विधि कहना भ्रामक लगता था | इस कारण सर्वप्रथम बेंथम ने सन 1789 में अंतर्राष्ट्रीय विधि शब्द का प्रयोग किया तभी से यह नाम प्रचलित है |अंतर्राष्ट्रीय विधि को एक ऐसी विधि के रूप में माना जाता है जो राष्ट्र में पारस्परिक संबंधों को विनियमित करती है |

अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा के संबंध में सभी विद्वान एक मत नहीं है इस संबंध में प्राचीन व आधुनिक लेखको में अंतर है | प्राचीन लेखकों ने तर्क और न्याय पर बल दिया है तो आधुनिक लेखकों ने अन्तर्राष्ट्रीय जीवन पर | दोनों प्रकार के लेखकों की परिभाषाएं निम्न प्रकार हैं-

सर हेनरी मेन के अनुसार-राष्ट्रों का कानून एक जटिल पद्धति जिसमें अनेक तत्वों का समावेश है |यह तत्व है अधिकार और न्याय के| वे सामान्य सिद्धांत जो प्राकृतिक सम न्याय की दशा में रहने वाले व्यक्तियों के आचरण तथा राष्ट्रों के संबंधों और आचरण के लिए समान रूप से उपयुक्त हो ,प्रथाओं तथा रूढ़ियों या आचारों और विधि-शास्त्रियों की समितियां का संग्रह, सभ्यता और व्यापार का विकास,निश्चित कानून की संहिता |

हाल के अनुसार-  “अन्तर्राष्ट्रीय  कानून आचरण के उन कतिपय नियमों में निहित है जिन्हें वर्तमान सभ्य राष्ट्र एक दूसरे के साथ व्यवहार में ऐसी शक्ति के साथ बाधित रूप से पालन करने योग्य समझते हैं जिस शक्ति के साथ सद्विवेक कर्तव्य कर्तव्य परायण व्यक्ति अपने देश के कानून का पालन करते हैं और यह भी मानते हैं कि यदि अपने नियमों का उल्लंघन किया गया तो उपयुक्त साधनों द्वारा उन्हें लागू किया जा सकता है”

ह्यूज के अनुसार–  “अन्तर्राष्ट्रीय  कानून क्या है? यह सिद्धांतों एवं नियमों का निकाय है जिसे सभ्य राष्ट्र अपने पारस्परिक संबंधों में अपने ऊपर बंध्यकारी समझते हैं |यह संप्रभु राज्यों की सहमति पर आधारित है|”

उपर्युक्त लेखकों ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून  को सभ्य राष्ट्रों के आचरण को नियमित करने वाला कानून बताया है उनके अनुसार इससे संप्रभु राज्यों के अधिकार व कर्तव्य का सृजन होता है |

आधुनिक परिभाषा- आधुनिक लेखन के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय कानून की परिभाषा निम्न प्रकार की गई है|

ओपन हीम के अनुसार– “राष्ट्रो की विधि अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विधि रूढिजन्य तथा परंपरागत नियमों के समूह को कहते हैं जिन्हें सभ्य राज्य अपने पारस्परिक व्यवहारों में बंधनकारी मानते हैं  |”

ओपन हीम की इस परिभाषा की यह आलोचना की जाती है कि इसमें केवल राज्यों को शामिल किया गया है जबकि आज अंतर्राष्ट्रीय संगठनों व संस्थाओं को भी अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय वस्तु माना जाता है |संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद अंतर्राष्ट्रीय विधि के द्वारा व्यक्तियों को अधिकार व कर्तव्य प्रदान किए गए इन्हें शामिल नहीं किया गया है| इस परिभाषा में अंतर्राष्ट्रीय विधि को केवल रूढ़ियों व परंपरागत नियमों का समूह माना गया है जबकि कई नियम सभ्य राष्ट्रों द्वारा मान्यता प्राप्त विधि के सामान्य सिद्धांतों पर आधारित है |

ओपन हीम की यह परिभाषा सन 1955 में अपनी पुस्तक” इंटरनेशनल लॉ” में दी थी लेकिन इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय विधि में हुए परिवर्तनों के फल स्वरुप नवें संस्करण में पूर्व की परिभाषा में परिवर्तन करते हुए नई परिभाषा दी| इस परिभाषा के अनुसार “अंतर्राष्ट्रीय विधि नियमों का वह समूह है जो राज्यों के एक दूसरे के साथ पारस्परिक संबंधों में विधिक रूप से बाध्यकारी है| यह नियम प्राथमिक रूप से राज्यों के संबंधों को नियंत्रित करते हैं परंतु राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय नहीं है| अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तथा कुछ हद तक व्यक्ति भी अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा प्रदत्त किए गए अधिकार व कर्तव्यों के विषय हो सकते हैं |

स्टार्क के अनुसार- अंतर्राष्ट्रीय विधि नियमों का वह समूह है जिनमें अधिकांश भाग उन सिद्धांतों का नियमों से बना है जिनका अनुपालन करने के लिए राज्य अपने आप को बाध्य अनुभव करते हैं |अतः वे अपने पारस्परिक संबंधों में इनका पालन करते हैं|

इसमें निम्नलिखित नियम भी सम्मिलित हैं-

( क) अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा संगठनों की कार्यप्रणाली उनके पारस्परिक संबंध तथा राज्यों एवं व्यक्तियों के संबंधों के नियम |

(ख) कुछ वैधानिक नियम जो व्यक्तियों तथा गैर राज्य इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में संबंधित हैं |

अंतर्राष्ट्रीय विधि की उचित परिभाषा-अंतर्राष्ट्रीय विधि सदियों से गतिशील रही है परिस्थितियों की आवश्यकता अनुसार इसमें नियमों और सिद्धांतों का निरंतर विकास होता रहा है पिछले कुछ दशकों से अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्वरूप में परिवर्तन हुआ है जैसे प्रोफेसर फ्रीडमैन ने लिखा है-” आयतन तथा क्षेत्र दोनों में ही अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा करारो का कार्य क्षेत्र अधिक विस्तृत हुआ है आज अंतर्राष्ट्रीय विधि विभिन्न तथा महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित है जैसे मानवीय अधिकार, शांति मानवता के विरुद्ध अपराध, आणविक शक्ति का अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण, व्यापार संगठन ,श्रम अभिसमय यातायात तथा स्वास्थ्य नियमों पर नियंत्रण| कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि इन क्षेत्रों में बाध्यकारी है परंतु इसमें संदेह नहीं है कि यह सब अंतर्राष्ट्रीय विधि के वैध विषय है |”इन विभिन्न परिवर्तनों के कारण यह आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि की एक उचित उपयुक्त परिभाषा हो इस संबंध में एडवर्ड कोलिंस की परिभाषा उचित है-अंतरराष्ट्रीय कानून निरंतर विकसित होने वाले नियमों का ऐसा समूह है जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य सामान्य अपने पारस्परिक संबंधों में लागू करते हैं यह नियम राज्यों और कुछ कम हद तक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा व्यक्तियों को अधिकार एवं उत्तरदायित्व प्रदान करते हैं निष्कर्षिता यह कहा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि निरंतर विकसित होने वाले नियमों तथा सिद्धांतों का एक समूह है जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के पारस्परिक संबंधों को नियंत्रित करते हैं|

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